जालोर/मारवाड़ दैनिक न्यूज –
रोहिड़ा, एक औषधीय पौधा, जिसे दवाई का बाप भी कहा जाता है, त्वचा, फोड़े-फुंसियों और पेट संबंधी रोगों के उपचार में अत्यंत प्रभावी है। इसकी लकड़ी की बेशकीमती होने के कारण इसका उपयोग विभिन्न प्रकार के निर्माण में किया जाता है।
1983 में, प्रदेश सरकार ने रोहिड़े के पुष्प को राज्य पुष्प के रूप में मान्यता दी थी। हालांकि, आज यह पौधा अपने अस्तित्व की जंग लड़ रहा है क्योंकि सरकार ने इसके संरक्षण के लिए कोई विशेष योजना नहीं बनाई है। इस पेड़ की खासियत यह है कि यह स्थिरीकरण के लिए भी बहुउपयोगी है।
रोहिड़ा का पेड़ लगातार अनदेखी का शिकार हो रहा है। भीषण गर्मी और माइनस सर्दी में भी इस पेड़ की हर एक चीज बेशकीमती है। औषधीय गुणों से भरपूर रोहिड़ा के पेड़ की अनदेखी भविष्य में इसके वजूद पर भारी पड़ सकती है। यह पेड़ ना सिर्फ धोरों का श्रंगार है, बल्कि रेतीले धोरों के स्थिरीकरण के लिए भी बहुउपयोगी है।
रोहिड़ा की लकड़ी बेशकीमती और बेहद मजबूत होती है। इसकी लकड़ी की उम्र 100 साल होती है और इसकी लकड़ी में कीड़े नहीं लगते। रोहिड़े की लकड़ी की मजबूती लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। इसकी लकड़ी का उपयोग साज-सज्जा का सामान, फर्नीचर और घर के खिड़की और दरवाजे बनवाने के लिए किया जाता है।
रोहिड़ा औषधीय उपयोग में भी महत्वपूर्ण है। त्वचा, फोड़े-फुंसियों, पेट के रोग, घाव, कान का रोग, आंख के रोग की दवा में भी रोहिड़ा का उपयोग होता है। मूत्र संबंधी रोगों की दवा में भी रोहिड़ा का उपयोग होता है। पेट संबंधी रोगों में यह विशेष गुणकारी है और लिव-52 औषधि में भी इसका उपयोग किया जाता है।