राजस्थान के कड़वे फल केर की मांग देश-विदेश में बढ़ रही है, जिससे किसानों की अच्छी कमाई हो रही है। केर एक कड़वा फल होता है जो बंजर और पत्थरीली जमीन पर अधिक पाया जाता है। इसके पौधे को पानी की कम जरूरत होती है और यह हवा की नमी को सोखकर कई वर्षों तक हरा रह सकता है।
केर को खाने योग्य बनाने के लिए, इसे नमक डाले हुए पानी में डुबोकर रखा जाता है, जिससे इसका कड़वापन खत्म हो जाता है और इसका स्वाद खट्टा-मीठा हो जाता है। शहर के लोग केर की सब्जी और अचार को बहुत पसंद करते हैं।
गर्मी के मौसम में केर की झाड़ियां फूलों से लकदक होने लगती हैं और फरवरी के महीने में इन झाड़ियों पर फूल आने शुरू हो जाते हैं। अप्रेल और मई में इन झाड़ियों पर केर लगने लगते हैं, जो करीब दो महीने तक चलते हैं। इस बार केर के भाव 150 से 200 रुपए तक हैं।
गांव की महिलाएं प्रतिदिन करीब तीन-चार किलो केर लाकर बेच रही हैं और इससे उनकी अच्छी कमाई हो रही है। टोंक जिले की सब्जियां दिल्ली की मंडी में पसंद की जाती हैं, जबकि केर की सब्जी और अचार की देश-विदेश में बहुत मांग है।
शहरों और होटलों में केर की मांग बढ़ रही है। जयपुर, अजमेर, जोधपुर सहित टोंक जिले में केर की अद्वितीय मांग है। शहरों की होटलों की डाइनिंग टेबल पर अब केर की सब्जी और अचार नजर आने लगी है।
टोंक जिले में टिंडा, मिर्च, टमाटर, गोबी, मोगरे का फूल, खीरा, अमरूद, तरबूज और खरबूज जैसी सब्जियां भी काफी पसंद की जाती हैं। यह सब्जियां बनास नदी के मीठे पानी की सिंचाई से होती हैं। जिले में सब्जी की खेती से करीब 10 हजार परिवार जुड़े हुए हैं। जिले में 4 हजार हेक्टेयर में सब्जी की पैदावार होती है।