जयपुर, ‘जयसिंह राजा हुया तपधारी, जैपर नगर बसायो भारी, रचना सब शहरों से न्यारी…’’ यह कहावत हर साल जयपुर घूमने आने वाले लाखों सैलानियों की संख्या को चरितार्थ करती है। पर्यटकों की यह संख्या हर साल बढ़ती जा रही है।
जयपुर, जिसे विश्व धरोहर शहर का दर्जा प्राप्त है, पहला ऐसा सुनियोजित शहर है, जिसकी बसावट की कल्पना 150 साल पहले ही कर ली गई थी। इस ऐतिहासिक शहर की स्थापना 18 नवम्बर 1727 में सवाई जयसिंह द्वितीय ने की थी। वास्तुकला और नवग्रहों के अनुरूप यहां नौ चौकड़ियां बसाई गई थी।
जयपुर में बना पहला कल्कि मंदिर:
कहा जाता है कि दुनिया का पहला कल्कि मंदिर जयपुर में बनाया गया था। यह मंदिर सिरहड्योढ़ी बाजार में स्थित है और राजकीय प्रत्यक्ष प्रभार श्रेणी का है। इसका निर्माण सवाई जयसिंह ने 1732 से 1742 के बीच करवाया। इतिहासकार गोविंद शंकर शर्मा के अनुसार, सवाई जयसिंह के समय में लिखे गए ‘वचन प्रमाण ग्रंथ में कहा गया है कि अष्टदल कमल के मध्य में भगवान कल्कि विराजते हैं। इस मंदिर का उल्लेख श्रीकृष्ण भट्ट द्वारा लिखित संस्कृत महाकाव्य ईश्वर विलास के छठे सर्ग में भी है, जिसमें यह कहा गया है कि सवाई जयसिंह भगवान कल्कि की पूजा करते थे।
हवामहल में भगवान श्रीकृष्ण के मुकुट की आकृति :
जयपुर के स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण हवामहल जिसका निर्माण 1799 में सवाई प्रतापसिंह ने करवाया। हवामहल की संरचना भगवान श्रीकृष्ण के मुकुट के आकार की है। इसमें 365 छोटी-छोटी खिड़कियां, शरद मंदिर, रतन मंदिर, विचित्र मंदिर, और हवा मंदिर हैं। इसका निर्माण सवाई प्रतापसिंह की श्रीकृष्ण के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है।
नाहरगढ़ किला 700 फीट ऊंची पहाड़ी पर बनाया :
नाहरगढ़ किला 700 फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित है, जिसे सवाई जयसिंह ने 1734 में बनवाया था। किले के भीतर कुल 10 भवन हैं। ये भवन सूरज प्रकाश, चांद प्रकाश, कुशल प्रकाश, आनंद प्रकाश, जवाहर प्रकाश, लक्ष्मी प्रकाश, रतन प्रकाश, ललित प्रकाश और बसंत प्रकाश के नाम से प्रसिद्ध हैं। यहां पानी संग्रहण की एक अनूठी व्यवस्था भी आज भी मौजूद है।
रामगंज में बना पहला बरामदा :
सबसे पहले रामगंज में बरामदों का निर्माण हुआ था। मेहंदी चौक के सामने इसका नमूना तैयार किया गया था और उसके बाद रामगंज बाजार एवं अन्य बाजारों में बरामदों का निर्माण हुआ। इतिहासकार सियाशरण लश्करी के अनुसार, 1872 में शहर के बाजारों में टीनशेड लगाए गए थे। 1875 में सवाई रामसिंह ने शहर को गुलाबी रंग में रंगवाया, जबकि इससे पहले शहर सफेद रंग का था। 1942 में सवाई मानसिंह द्वितीय और तत्कालीन प्राइम मिनिस्टर सर मिर्जा इस्माइल ने जयपुर को आधुनिक रूप दिया और बरामदों का निर्माण करवाया।
हाथ से बना सोने का आखिरी सिक्का :
सवाई मानसिंह द्वितीय के शासनकाल के 28वें और अंतिम वर्ष 1949 में हाथ से बना सोने का आखिरी सिक्का जारी हुआ था। उस समय इस सिक्के का मूल्य 28 रुपए था। इस सिक्के पर एक और उर्दू में अयोध्या का राजचिह्न कचनार का झाड़ और 28वां वर्ष अंकित था, जबकि दूसरी ओर 1949 ईस्वी अंकित था।