राजस्थान की सब्जियां जिन्हें देशी और शाही सब्जी के नाम से भी जाना जाता है, आजकल राजस्थान के अधिकांश होटल, ढाबे और रेस्तरां में उपलब्ध हैं।
पश्चिमी रेगिस्तान में पानी की कमी के कारण, यहां के निवासी अभी भी पेड़ों पर उगने वाली सुखी सब्जियों पर निर्भर हैं। हालांकि थार रेगिस्तान में पानी की मात्रा बढ़ गई है, लेकिन यहां के लोग अभी भी पूरे वर्ष सूखी सब्जियां ही खाते हैं। इन सूखी सब्जियों का सेवन करने से विभिन्न स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होते हैं। जालोर सहित आस-पास के क्षेत्रों में, यह सब्जियां कंटीले पेड़ों पर सीजन के अनुसार उगती हैं और लोग इनका स्टॉक भी बनाए रखते हैं। जालोर में लगभग 10 से 12 प्रकार की सूखी सब्जियां मिलती हैं, जो कई महीनों तक खराब नहीं होती हैं।
भंवर मोदी का कहना है कि जालोर और उसके आस-पास के क्षेत्रों में, लोग यह सूखी सब्जियां पेड़ों से तोड़कर शहर में बेचते हैं। इन सब्जियों में सभी प्रकार के पोषक तत्व होते हैं, जिससे शरीर की कई बीमारियां दूर रहती हैं। आमतौर पर, कई लोग अच्छे मुनाफे के लिए केमिकल युक्त सब्जियां बेचते हैं, लेकिन यह सूखी सब्जियां प्राकृतिक रूप से सीजन के अनुसार उपलब्ध होती हैं।
इन सूखी सब्जियों को लोग आज भी बाजरे की रोटी के साथ पसंद करते हैं। इन राजस्थानी सब्जियों को देशी और शाही सब्जी भी कहते हैं। आजकल, यह सब्जियां राजस्थान के लगभग सभी होटल, ढाबे और रेस्तरां में देखने को मिलती हैं।
बाजार में उपलब्ध सूखी सब्जियां निम्नलिखित हैं – सांगरी, केर, कुमटिया, भेह, काचरी, ग्वारफली, फोफलिया, मेथी, काचर, खोखले।
प्रसिद्ध सुखी सब्जी विक्रेता भंवर मोदी बड़गांव
सुखी सब्जी विक्रेता और शाही सब्जियां के बनाने के लिए जालोर के कश्मीर बड़गांव निवासी भंवर मोदी की प्रसिद्ध है, इनका कहना है कि लोग गर्मी ऋतु में सांगरी, केर, कुमटिया, ग्वार फली, भेह, काचरी, फोफलिया, मेथी, काचर, खोखले आदि को सुखाकर कर पुरी साल भर इन सब्जियों से भोजन बनाते हैं। फ्रैश सब्जी के अलावा सुखी सब्जी खाने में बहुत ही स्वादिष्ट होती है। भंवर मोदी बड़ी-बड़ी। शादियों, पार्टियों और छोटे बड़े कार्यक्रम में सब्जी बनाने का टेका लेते हैं।
सांगरी दो से तीन प्रकार की होती है और यह सबसे पहले वैशाख में उगती है। यह पहले फली नुमा होती है, फिर इसे तोड़कर सूखाया जाता है, जिससे यह बारीक सांगरी बन जाती है। समय के साथ यह मोटी होती है और इसके बीज बढ़ जाते हैं। मीडियम सांगरी 800 और बड़ी सांगरी 600 रुपए प्रति किलो बिकती है। सबसे अच्छा केर मार्च और अप्रैल के महीने में आता है। केर के विभिन्न आकार होते हैं। बारीक केर सबसे महंगा होता है और यह 2000 से 2200 रुपए प्रति किलो बिकता है।
विभिन्न आकार के केर 500 से 1500 रुपए प्रति किलो बिकते हैं। काकड़िया को सुखाकर खिलरा बनाया जाता है, जो 200 रुपए प्रति किलो बिकता है। टिंडसी को सूखाकर फोफलिया बनाया जाता है। मार्च और अप्रैल में फोगला आता है, जो बाजार में 300 रुपए प्रति किलो बिकता है।